Bihar: बिहार की सियासत एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला विपक्ष से नहीं बल्कि खुद सत्ता गठबंधन के अंदर से उठे तीखे सवालों का है। जब सरकार में शामिल सहयोगी दल ही राज्य की कानून व्यवस्था पर उंगली उठाने लगें, तो यह ना केवल राजनीति में हलचल पैदा करता है, बल्कि आम जनता के मन में भी कई सवाल खड़े कर देता है। क्या सच में बिहार की सड़कों पर डर का माहौल है? या फिर यह सब आगामी चुनाव की रणनीति का हिस्सा है?
Table of Contents
अपराध पर सवाल या सियासी दांव
हाल ही में गठबंधन के कुछ नेताओं ने बिहार सरकार की कानून व्यवस्था पर खुलेआम सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि राज्य में अपराध बढ़ रहा है और पुलिस-प्रशासन उसे रोक पाने में नाकाम नजर आ रहा है। यह बयान सिर्फ मीडिया की सुर्खियों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने सत्ता के गलियारों में भी खलबली मचा दी है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि यह बयानबाज़ी जनता के हित में हो रही है या किसी राजनीतिक मजबूरी के तहत?
जनता की चिंता या सीटों की रणनीति
जब कोई गठबंधन साथी सरकार पर सवाल उठाता है, तो उसके पीछे कई बार सीटों की राजनीति भी छिपी होती है। चुनावी समीकरण को देखते हुए सहयोगी दल अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश करते हैं। इस बार भी कुछ वैसा ही नजर आ रहा है। लेकिन इस सियासत में आम आदमी का क्या? उसकी सुरक्षा, उसका भरोसा और उसका जीवन दांव पर नहीं लगना चाहिए।
सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है काम से जवाब देना
अगर वाकई राज्य में अपराध बढ़ा है, तो सिर्फ बयानों से नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर सख्त कदम उठाकर जवाब देना होगा। पुलिस व्यवस्था को मजबूत करना, दोषियों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई करना और जनता में भरोसा जगाना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। वहीं, अगर यह आरोप केवल सियासी चाल है, तो सरकार को भी शांति और संयम के साथ अपनी बात साफ करनी चाहिए।
चुनाव से पहले क्यों बढ़ती है बयानबाज़ी
हर चुनाव से पहले इस तरह की बयानबाज़ी आम बात हो गई है। सहयोगी दलों द्वारा अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने के लिए सरकार पर दबाव बनाना अब एक आम रणनीति बन चुकी है। लेकिन इस बार मामला संवेदनशील है, क्योंकि यह आम लोगों की सुरक्षा से जुड़ा है। इसीलिए जरूरी है कि राजनीति से ऊपर उठकर सरकार और सहयोगी मिलकर जनता की चिंता को प्राथमिकता दें।
राजनीतिक मजबूरी या सच्ची चिंता
बिहार की कानून व्यवस्था पर उठे सवाल गंभीर हैं। लेकिन इनकी गंभीरता तब और बढ़ जाती है जब यह सरकार के अंदर से उठते हैं। यह जरूरी है कि सरकार सच्चाई को सामने लाए और अगर कहीं चूक है तो तुरंत उसे सुधारे। वरना यह न केवल सरकार की साख को कमजोर करेगा, बल्कि आम जनता के भरोसे को भी तोड़ेगा।[Related-Posts]
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सूचना और विश्लेषण के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दिए गए विचार हालिया घटनाओं और सार्वजनिक बयानों पर आधारित हैं। किसी भी राजनीतिक या व्यक्तिगत निर्णय से पहले आधिकारिक स्रोतों और स्वयं के विवेक का अवश्य प्रयोग करें।
Also Read:
Kotak Bank’s quarterly results out: मुनाफे में गिरावट, लेकिन उम्मीदें बरकरार
DAVV में CUET-UG के ज़रिए एडमिशन लेने वाले छात्रों के लिए चॉइस फिलिंग की ज़रूरी गाइडलाइन